महाराष्ट्र के जलगांव रेलवे स्टेशन पर 25 साल पहले एक नेत्रहीन बच्ची को कूड़ेदान में फेंका गया था, जिसे पुलिस ने बचाया गया और फिर उसे सुधार गृह पहुंचाया गया. उस लड़की ने महाराष्ट्रर लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की और उसकी तैनाती नागपुर कलेक्टर कार्यालय में की गई है. हाल ही में उसे नियुक्ति पत्र मिला. उस लड़की का नाम माला है. आइए जानते हैं कि माला के संघर्ष की कहानी.
माला नागपुर कलेक्टर कार्यालय में अपनी पहली पोस्टिंग लेने के लिए तैयार है. माला पापलकर ने पिछले साल मई में महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) की क्लर्क-कम-टाइपिस्ट परीक्षा (ग्रुप सी) पास करके सुर्खियां बटोरी थीं. तीन दिन पहले 26 वर्षीय माला को एक पत्र मिला, जिसमें उसे नागपुर कलेक्टरेट में राजस्व सहायक के रूप में उसकी पोस्टिंग के बारे में सूचित किया गया था. माला औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अगले 8-10 दिनों में काम पर रिपोर्ट करने की संभावना है. कुछ प्रक्रियात्मक समस्याओं के कारण उनकी पोस्टिंग में कुछ महीने की देरी हुई थी.
कूड़ेदान से निकलकर ऐसे तक किया सफर
जलगांव रेलवे स्टेशन पर कूड़ेदान में एक शिशु के रूप में छोड़ी गई दृष्टिहीन माला को अब नागपुर जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में सरकारी नौकरी मिल गई है. रेलवे स्टेशन के पास एक कूड़ेदान में एक शिशु के रूप में पाया गया था और उसे एक स्थानीय अनाथालय में ले जाया गया था. जन्म से नेत्रहीन होने के बावजूद, माला ने कभी अपनी इस कमजोरी को अपने भविष्य को परिभाषित नहीं करने दिया. अनाथालय से मिले समर्थन और दृष्टिहीन छात्रों के लिए विशेष शिक्षा तक पहुंच के साथ उसने अपनी पढ़ाई लगाता जारी रखी और यहां तक का सफर तय किया. माला के संघर्ष की कहानी महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है.
बिना मां-बाप के पली-बढ़ी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमरावती की रहने वाली माला पापलकर वजार स्थित स्वर्गीय अंबादास पंत वैद्य अनाथालय में रहकर यह परीक्षा पास की थी. अपने माता-पिता के बारे में न जानते हुए माला करीब 150 अनाथ और मानसिक रूप से मंद बच्चों के साथ पली-बढ़ी और सफलता की एक मिशाल पेश की. पुलिस ने उसके माता-पिता की तलाश की, लेकिन वे नहीं मिले. चूंकि जलगांव में विकलांगों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए जलगांव पुलिस ने उसे बाल कल्याण समिति के आदेश के अनुसार स्वर्गीय अंबादास पंत वैद्य अनाथालय के निदेशक शंकर बाबा पापलकर को सौंप दिया था.
कहां से की पढ़ाई?
पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित शंकर बाबा पापलकर ने उनकी जिम्मेदारी स्वीकार की और उनका नाम माला रखा. उन्होंने माला की शिक्षा का ध्यान रखा और माला को बचपन से ही किताबें पढ़ने और सीखने का शौक था. उन्होंने दृढ़ निश्चय और मेहनत के साथ पढ़ाई जारी रखी. डॉ. नरेंद्र भिवापुरकर अंध विद्यालय, अमरावती से 10वीं और 12वीं पास करने के बाद उसने विदर्भ ज्ञान विज्ञान संस्थान, अमरावती से कला स्नातक की परीक्षा 2018 में पास की. उसके बाद उसने पोस्ट ग्रेजुएशन की भी डिग्री हासिल की.